HM 162025

HM 162025

16-12-2025
प्रात:मुरली
ओम् शान्ति
“बापदादा”'
मधुबन
“ मीठे बच्चे – तुम्हें पढ़ाई पढ़नी और पढ़ानी है , इसमें आशीर्वाद की बात नहीं , तुम सबको यही बताओ कि बाप को याद करो तो सब दु : ख दूर हो जायेंगे ''
प्रश्नः- मनुष्यों को कौन-कौन सी फिकराते हैं? तुम बच्चों को कोई भी फिकरात नहीं – क्यों?
उत्तर:- मनुष्यों को इस समय फिकरात ही फिकरात है – बच्चा बीमार हुआ तो फिकरात, बच्चा मरा तो फिकरात, किसी को बच्चा न हुआ तो फिकरात, कोई ने अनाज जास्ती रखा, पुलिस वा इनकम टैक्स वाले आये तो फिकरात….. यह है ही डर्टी दुनिया, दु:ख देने वाली। तुम बच्चों को कोई फिकरात नहीं, क्योंकि तुम्हें सतगुरू बाबा मिला है। कहते भी हैं फिक्र से फारिग कींदा स्वामी सद्गुरू…। अभी तुम ऐसी दुनिया में जाते हो जहाँ कोई फिकरात नहीं।
गीत:- तू प्यार का सागर है….

मीठे-मीठे सिकीलधे बच्चों प्रति मात-पिता बापदादा का याद-प्यार और गुडमॉर्निंग। रूहानी बाप की रूहानी बच्चों को नमस्ते।

धारणा के लिए मुख्य सार:-

1) प्यार की राजधानी में चलना है, इसलिए आपस में क्षीरखण्ड होकर रहना है। कभी भी लूनपानी बन मतभेद में नहीं आना है। अपने आपको आपेही सुधारना है।

2) देह-अभिमान को छोड़ मास्टर प्यार का सागर बनना है। अपने दैवी कैरेक्टर बनाने हैं। बहुत-बहुत मीठा होकर चलना है।

वरदान:- मन की स्वतन्त्रता द्वारा सर्व आत्माओं को शान्ति का दान देने वाले मन्सा महादानी भव
बांधेलियां तन से भल परतन्त्र हैं लेकिन मन से यदि स्वतन्त्र हैं तो अपनी वृत्ति द्वारा, शुद्ध संकल्प द्वारा विश्व के वायुमण्डल को बदलने की सेवा कर सकती हैं। आजकल विश्व को आवश्यकता है मन के शान्ति की। तो मन से स्वतन्त्र आत्मा मन्सा द्वारा शान्ति के वायब्रेशन फैला सकती है। शान्ति के सागर बाप की याद में रहने से आटोमेटिक शान्ति की किरणें फैलती हैं। ऐसे शान्ति का दान देने वाले मन्सा महादानी हैं।
स्लोगन:- पुरुषार्थ ऐसा करो जिसे देख अन्य आत्मायें भी फॉलो करें।

अव्यक्त इशारे – अब सम्पन्न वा कर्मातीत बनने की धुन लगाओ

हर ब्राहमण बाप-सामन चैतन्य चित्र बनो, लाइट और माइट हाउस की झाँकी बनो। संकल्प शक्ति का, साइलेन्स का भाषण तैयार करो और कर्मातीत स्टेज पर वरदानी मूर्त का पार्ट बजाओ तब सम्पूर्णता समीप आयेगी। फिर सेकेण्ड से भी जल्दी जहाँ कर्तव्य कराना होगा वहाँ वायरलेस द्वारा डायरेक्शन दे सकेंगे। सेकेण्ड में कर्मातीत स्टेज के आधार से संकल्प किया और जहाँ चाहें वहाँ वह संकल्प पहुंच जाए।



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